Last modified on 2 जनवरी 2009, at 20:42

जीवन / कुसुम जैन

घूंघर-घूंघर बरसती हैं बूंदें
झूमते हैं पत्ते

पत्ता-पत्ता
जी रहा है
पल-पल को
आने वाले
कल से बेख़बर