जीवन से जुड़े
प्राय: समस्त प्रश्नों पर
अत्याधिक सचेत रहने की
आवश्यकता नहीं
क्योंकि
तुम इसके प्रवाह को
कदाचित, नहीं कर सकते
नियंत्रित, व्यवस्थित
अथवा मोड़ सकते इसका रुख
तुम, सर्वथा इतने ही अर्थहीन हो
कमजोर और असहाय
किसी सुन्दरम पत्थर की मूर्ति की भाँति
जो, नहीं उड़ा पाती
अपने सिर पर बैठे किसी पक्षी को
और चुपचाप, अभिशिप्त
झेलती रहती उनका मल-मूत्र
....जीवन से जुड़े
कई महत्वपूर्ण प्रसंगों के समक्ष
तुम एक पत्थर की
सुंदर मूर्ति के अतिरिक्त
कुछ और नहीं हो.
रचनाकाल: १५ जनवरी २०११