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जीवन यात्रा / मन्त्रेश्वर झा

कखनो के यात्रा
एहन ठाम पहुँचि जाइत अछि
जखन आगाँ बढ़बाक
सब रास्ता बन्द भेटैत छैक
यात्री किंकर्तव्यविमूढ़
भेल, टुकटुक ताकय लगैत अछि
एक दिस भीषण जंगल,
दोसर दिस दारुण पहाड़,
एक कात हिंसक पशुक
सिंह गर्जना
तऽ दोसर कात पाताल सनक खाधि,
की करय पथिक
जाय कोना आ कोमहर
जीवन यात्रा ओत्तहि
ठमकि जाइत छैक
सभटा अरजल धन
सभ पर गरजल अपन शब्द
ओकरा पर कुचरय लगैत छैक
कबाउछ जकाँ ओकर अपने
ओकरा भेकरय लगैत छैक,
पथिक अपस्याँत होइत
परास्त होबय लगैत अछि
आ कोमहरो सँ निविड़
अन्हार ओकरा घेरि लैत छैक
पानिक बुलबुला जकाँ
बिलाइत बिलाइत
यात्री अनन्त कालक
एक क्षणिक ग्रास बनि
लुप्त भऽ जाइत अछि
एहि पथिकक कथा सभकेँ
बुझल छैक
हमरो बुझल अछि
तथापि सपना देखब
कत्तेक प्रिय लगैत अछि,
सपना मे जीवैत जीवैत
व्यक्ति कतेक अनभुआर भऽ
जाइत अछि,
सत्य कतेक अनचिन्हार
भऽ जाइत छैक,
जीवनक अन्तिम यात्रा तक
एहिना बहटारैत रहू पथिक
अपना केँ अपन निर्मित
यश अपयश मे
भटकैत रहू एहिना
ता ..... धरि ....
जा ..... धरि .....