Last modified on 17 जून 2015, at 17:21

ज्योतिर्गीत / मुकुटधर पांडेय

घर-घर दीप जले
कज्जल-कूट-कुहू-कृष्णा यह
राका में बदले
कर निवास अचला बनकर तू
अयि चले कमले
हो तेरे वाहन उलूक के
कोकिल-कूक गले
जड़ता की जड़ तक जल जावे
सुमति-शिखा निकले
हृदय लोक आलोक पूर्ण हो
ज्योतिर्गीत ढले।