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टटकी कविता / उमेश प्रसाद

की नाना की मामू मौसा,
सब के सब अब ठगऽ हो ।
ई बिहार के अकला बाऊआ,
भिजुन सभे जे बकऽ हो ।
बड दिन कइला तानाशाही,
हफ-हफ दौड़ऽ बनऽ सिपाही
काछ-काछ के सब दिन खइला,
खुल करके सब देत गबाही ।
अरे बाप चपरासी भी नय,
पाप भरल लब-लब हो ।
ई बिहार के ................।
रेहड़ा बाँगड़ा आऊ अलंग पर,
मिल जुल लगवऽ पेड़
आम संतरा शीशम सखुआ
कम से कम तो रेड़ ।
उनखर सोना थोना बनके
आइते धर तोर लक हो ।
ई बिहार के ................।
जंगल जीवन मंगल दिन हल,
काहे कोठा ले चंगल।
गाछ लगा धन वापस लाबऽ
जन-जन ले बड़का दंगल ।
शुद्ध हवा बादर के आदर
करना असली हक हो
ई बिहार के ................।