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टमाटर / राजेश कमल

वो हर थाली में होता है
हर भनसे में होता है
हर भोज में होता है
कभी खेत में पड़े-पड़े सड़ जाता है
कभी सिर्फ़ ख़ास थालियों में ही आता है
कभी लाल टुह अपने मौलिक रंग में होता है
तो कभी जय श्री राम हो जाता है
कभी कभी तमाशाइयों का हथियार भी हो जाता है
कभी प्लेट में पड़े-पड़े बेकार हो जाता है
टमाटर टाइप के लोगों को किसी से बैर नहीं होता
किसी से दुश्मनी नहीं होती
सबसे यारी
बस्स आप उसे अपने भनसे में रखिये
चाहे वह शाकाहारी हो या माँसाहारी
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
रहेगा वह एक किनारे चुपचाप
अपने अंत के इंतज़ार में
चटनी बना
भरता बना
या कभी
कच्चा चबा लिया गया।