गरदन में घंटी तोर टुनुर-टुनुर बोले
दउनी बचल हे अभी ढेर, हो बसहा!
लपकऽ कि डूबत हे बेर।
झपटऽ कि बिलमऽ न अउँज-गउँज ध्यान में
दउड़ऽ दस फेरा फिर चलिहऽ बथान में
तोरा अघा के हम पैर जोरिआएम
तोहर महादे से घेर, हो बसहा!
लपकऽ कि डूबित हे बेर।
तोरे पर हमरा दिन-दुनिया के सान हे
हम्मर टिटकारी में तोरे से जान हे
एसो लंगोटी के धोती में बदलम हम
चुनरी कीनम रंगफेर, हो बसहा
लपकऽ कि डूबित हे बेर।
बुतरू पढ़ाएम, बेटी बिआहम
गल्ला से देसवा के कोठी उसाहम
रहतइ न कोई अब भुक्खल न दुक्खल
हिलमिल चिखम पचमेर, हो बसहा!
लपकऽ कि डूबित हे बेर।