रोज़
एक लाश गुज़रती है
विचार
(मक्खियों की तरह)
मँडराते हैं,
उस लाश पर
दर्द होता है मुझे
मेरा ही नाश होता है
ज़िंदगी का एक दिन
और गुज़र जाता है
अंधकार गहरा
बहुत गहरा
होता जा रहा है
वेदनाओं की दम तोड़ती
लाश भी नज़र नहीं आती
गहराइयों और खाइयों पर पड़ा
पटरा
टूट रहा है, टूट रहा है...