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ठिकाना खोजें / विजेन्द्र

चलो, अब
हम तुम ठिकाना खोजें
हम दोनों ने
अब तक लम्बी उड़ान भर ली है,
अब खसी लालिमा लिये
सूर्य ढलने को हैं
वृक्षो ने-
अपनी घनी होती छायाएँ
समेट ली हैं।
पृथ्वी हमें
ठहरने को जगह नहीं देती
चहकने को पत्तियोंदार टहनी।
निरभ्र आकाष में
उड़ान पर
हम सदा रह नहीं सकते
आना तो पृथ्वी पर ही हैं।
वृक्ष हम पर
दयालु हैं
जहाँ हम टिक कर
अपनी संतान को
नीड़ बुन सकते हैं।

2006