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ठीकर / कविता वाचक्नवी

ठीकर


हम श्मसानों के नज़दीक
बना बैठे घर
एक-एक पल की
अरथी को
जाते देखा,
कितने घट फूटे
या फोड़े
ठीकर देख
कौन जानेगा?