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ठीक जगह / वीरू सोनकर

उसने पानी को
पहली बार सामने आये किसी अजूबे सा देखा
उसमे घुलते रंग को देखा
और
देखी आग
छुआ, और कहा "ओह तो तुम मेरा छूटा हुआ हिस्सा थी"

पैरो के नीचे की भुरभुरी मिटटी को सूंघा,
तप्त सूर्य की तेज़ आँच के बाद भी
वहाँ घास की एक कोंपल निकल आयी थी

उसने नदी में एक पत्थर उठा कर फेंका,
भंवर में बनी-बिगड़ी लहरें गिनी

फिर वह आकाश की ओर मुँह उठा कर शुक्राने में हँसा,
गुजरती हवा के कान में कहा
सुनो,
मैं बिलकुल ठीक जगह पर हूँ