किसी मक्कार आदमी के ड्राइंग-रूम में पसरे
उसके किंग साइज सोफ़े
और टायलेट में लगी
कमोड की तारीफ़ के बाद
ज़ेहन में बची रह गई भाषा से
कविता नहीं बनती
किसी तानाशाह की जी-हुजूरी
और अभिनन्दन के बाद
ज़ेहन में बची रह गई भाषा से भी
बात नहीं बनती
क्योंकि कविता
भाषा का डम्पिंग ग्राउण्ड नहीं होती ।