ढाक जैसे पात बनकर क्या करुँंगा।
स्वप्न की सौगात बनकर क्या करूँगा।
जानता हूँ मैं सभी प्रश्नो का उत्तर,
सत्य का सुकरात बनकर क्या करुँगा।।
प्यास पोखर की कुँआरी रह गयी तो,
बेरहम बरसात बनकर क्या करुँगा।।
लाख कुंती सी तुम्हारी हो निठुरता,
कर्ण सा प्रतिघात बनकर क्या करूँगा।।