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तंगहाली में / अरविन्द श्रीवास्तव

तंगहाली में चूहों को देखता हूँ मैं
और चूहे मुझे

हम बद्दुआओं और शापों को तलाशते हैं
बुरे स्वप्नों की व्याख्या करते हैं और
आँत की मरोड़ व रसद-गोदामों के बारे में
बतियाते हैं
हम बतियाते हैं मंहगाई और
खाऊ जनप्रतिनिधियों के बारे में
ठीक-ठाक चलती रहती है
हमारी रिश्तेदारी

सेल्फ़ पर रखे मोटे धार्मिक-ग्रंथों के पीछे
रहते थे चूहे
इसलिए भी सेहत उनकी कमज़ोर नहीं थी

ज्यों-ज्यों बढ़ती गई मेरी तंगहाली
चूहे देखते मुझे छिप-छिप कर
सहज किन्तु चौकन्ने
और मैं उन्हें ललचाई आँखों से

इससे पहले मैं उन्हें आग में भून
कर पाता उदरस्थ
वे गए यहाँ से फूट !