जी चाहता है-
चली जाऊँ
किसी अनजान पगडण्डी पर,
किसी को बिना बताए,
ताकि कोई आधे रास्ते पर
पीछे से आकर
आवाज न लगाए।
पहुँच जाऊँ
चलते-चलते
किसी ऐसे नगर में
जहाँ मुझे कोई जानता न हो;
भीड़ हो तो हो सड़क पर
मगर मुझे कोई पहचानता न हो।
अपनों की कोई
बस्ती न हो जहाँ,
रिश्तों के भँवर में डूबती
अहसास की कोई
कश्ती न हो जहाँ।
जहाँ हवा में तैरते
कई अनकहे सवाल न हों;
घटी/अनघटी
घटनाओं पर
ऊधम न हो, बवाल न हो
उम्मीद की कँटीली झाड़ियों में
बेबसी न हो लहूलुहान जहाँ
बना पाती मैं
एक प्यारा सा घरौंदा
बसा पाती
एक छोटा सा जहान वहाँ।