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तर्क / अनिल गंगल

तर्क से सिद्ध किया जा सकता है
रात को दिन
दो और दो का जोड़ पाँच
और एक और एक ग्यारह

दुःख को सुख में
होने को न होने में
फ़ैशन को ज़रुरत में
धारणा को यथार्थ में

काले को सफ़ेद में
बला को हूर में
भय को अनुशासन में
तानाशाही को लोकतन्त्र में

तर्क से दरिद्र धरती को
सिद्ध किया जा सकता है शस्य श्यामला
पोखर को महासागर
और अपराधी को क़ाज़ी

एक ही क्षण में
बदला जा सकता है तर्क से
बेहद बुरे दिनों को अच्छे दिनों में।