विश्वास से भी पक्की
जो भरोसेमंद चीज़ें
हमारे पास मौज़ूद हैं
यह उनमें से एक है
हमारे माल-असबाब पर
सदियों से तैनात
एक मुस्तैद लौह-प्रहरी
भले ही इसे हमने
बाहर दरवाज़े पर लगा रखा हो
मगर यह जानता है
बुरे समय के लिए अपने भीतर
किस घर ने
कितनी धातु
कितना धन
बचाकर रखा है
किस घर की तिजोरियाँ
सपनों से लबालब हैं
किस घर में
सिवा उम्मीदों के कुछ नहीं
दूसरों के सुख
किस-किसने
अपने नाम चढ़ा रखे हैं
अपने षड्यंत्र छुपाने में
कौन-कौन
उसका इस्तेमाल
कर रहा है
यह सब जानता है
और न चाहते हुए भी
सब सुरक्षित रखता है
यह राजदार हमारा
अनुपस्थिति में हमारी
कभी झुकता नहीं
टूट भले जाए ।