Last modified on 24 अप्रैल 2018, at 14:06

तिकड़म / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

सीताराम सीताराम!
कंठी ला
माला ला
लेकिन
जुबान नै खोलो,
एकरा ले
तिकड़मी से
हर तिकड़म के ताला ला
तिकड़मी कमाल कैने हो,
सगरो अपन गोटी लाल कैने हो
अब की,
पते नै चलऽ हो
की अच्छा अउ दब की

तोरा रोटी बिना
देह टूट रहलो हे,
सरदार
सोना निगल के
चाँदी कूट रहलो हे
वैसन के ज्ञान की?
चाहे जनक रहो
कि जानकी
सीताराम सीताराम
कभी अपन
कंुडली भी देखैला हे?
देखो,

कुंडली के कारोबार में
ज्योतिषी के व्यापार देखो,
देखो रेसमी
कोटेन के कपड़ा
अर अपन कपार देखो
न हुरसा न हुरसी
देला देतो सस्ते में कुरसी
कुरसी दर कुरसी के
सपना हो
तहूं कुरसी के तिकड़म करो
नै तो जनम भर तड़पन हो
देखो, गौर करके देखो
दिल्ली से पटना तक
दौड़ के देखो
कनै महल पर महल
तों करइत रहो
सब दिन
ओकर डेवढ़ी के टहल