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तीन सत्य / मोहन अम्बर

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तुम करो विश्वास मेरे गीत पर
वह बनाना चाहता है
आदमीयत की मेरी तस्वीर को।
एक तारा टूटकर आकाश से
कह गया है आज मेरी साँस से
जिन्दगी मेरी तरह तुम भी जियो
मृत्यु से पहले ज़रा विष भी पियो
इसलिए तुमसे निवेदन प्राण का
पाँव मत पूजो किसी पाषाण का
तुम करो विश्वास युग संघर्ष पर
वह दिलाना चाहता है
हर ग़रीबी की लुटी जागीर को॥ आदमीयत की ।
जब कभी मैं दर्द से पानी बना
आँख यों खोली कि है रोना मना
भेद पीड़ा का किसी से मत कहो
जिन्दगी से जीतने लड़ते रहो
इसलिए तुम भी चलो उस बात पर
जो शलभ से दीप कहता रात भर
तुम करो विश्वास मन के धैर्य पर
वह बुझाना चाहता है
आग बनकर बरसती पीर को॥ आदमीयत की ।
आग मुझको भी लगाना याद है
किन्तु दुनिया की यही फरियाद है
आग को पहले बुझाना सीख लो
जुल्म की ताकत घटाना सीख लो
इसलिए तुमसे निवेदन है यही
बात मत पूछो समय ने जो कही
तुम करो विश्वास अपने प्यार पर
वह झुकाना चाहता है
शाँत मिट्टी पर उठी शमशीर को॥ आदमीयत की ।