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तुमसे मिले / रमेश रंजक

तुमसे मिले
और बतियाए
हमने पँख नए से पाए ।

फक्कड़, अक्खड़पन जो खोया
अब लगता धरती में बोया
तुमने कुछ
इस तरह उकेरा
पिछले दिन हो गए सवाए ।

हमें लगा धरती-नभ अपना
बिछुड़न कालखण्ड था सपना
भेंट-वार्ता
के प्यारे क्षण
कितनी ताक़त लेकर आए !