Last modified on 22 जून 2022, at 12:48

तुम्हारा जाना / प्रदीप त्रिपाठी

तुम्हारा जाना
जैसे कि कोई शब्द नहीं

तुम्हारा न होना
जैसे कि कोई धूप और मिट्टी नहीं

तुम सा न होना
जैसे कि गुमशुदा मन

तुममें न होना
जैसे कि आत्मा की रुंधी आवाज

तुम्हारा होना
जैसे कि एक अश्क छलकता प्रेम

तुमसे दूर होना
जैसे कि हर दुःख पहाड़ और नदी।