मोर पंखी आँख में
दुबका हुआ
शिशु सा तुम्हारा प्यार
कुछ ऐसा हठीला हो गया है
दृष्टि का आँचल पकड़कर
मचलता है
बून्द बन कर उछलता है
फर्श गीला हो गया है
तर्क से
कटता कहाँ
बस, झेलता है
दूब के मानिन्द
दिन दिन फैलता है
कुछ गँठीला
कुछ कँटीला
हो गया प्यार
कुछ ऐसा हठीला हो गया है।