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तुम्हारा संगीत / नरेश अग्रवाल

कितने सारे पहाड़ देख लिए मैंने
कितनी ही नदियां
और संगीत बड़े-बड़े वादकों का
फिर भी सुनता हूं जब
तुम्हारी ढोलक की थपथपाती मधुर आवाज
लगता है जैसे मैं जाग गया,
जाग गया हो चंद्रमा
इसके दोनों छोर के हिलने से।
सिर्फ मैं नहीं सुन रहा हूं इस आवाज को
सभी सुन रहे हैं इस आवाज को
जहां तक जाती होगी यह
सभी के कान तुम्हारी तरफ
जैसे तुम उनमें एक शक्ति का संचार कर रहे हो
भर रहे हो धडक़न धीमी-धीमी
पारे के आगे बढऩे जैसी।
तुम बार-बार बजाओ
मैं निकलता जा रहा हूं दूर तुमसे
पूरी तरह ओझल
फिर भी तुम्हारे स्वर मुझे थपथपा रहे
जाग्रत कर रहे हैं मुझे अब तक।