तुम्हारा साथ पल पल चाहती है
ज़मीं प्यासी है बादल चाहती है
मुसलसल क़ैद से उकता गई है
ये चिड़िया कोई जंगल चाहती है
मेरी चाहत की ये क्या ज़िद है आख़िर
जो तुम पर हक़ मुकम्मल चाहती है
घटा बरसात की पागल दीवानी
मिरी आंखों का काजल चाहती है
उजालों ने वो साजिश की कि ख़ुशबू
अंधेरे अब मुसलसल चाहती है