तुम्हारा स्पर्श
मैं
मंदिर के कण-कण में
जी रही थी
जिस दिन
तुम आये थे
और स्पर्श हुआ था
मेरे कण-कण से।
मैं बज उठी थी
घंटियों के रुनझुन-सी ।
तुम्हारा स्पर्श
मैं
मंदिर के कण-कण में
जी रही थी
जिस दिन
तुम आये थे
और स्पर्श हुआ था
मेरे कण-कण से।
मैं बज उठी थी
घंटियों के रुनझुन-सी ।