तुम्हें याद है, उस दिन बाबा पोखर में
हम तुम दोनों साथ स्नान करने पहुँचे थे,
पहले बोल न बात हुई बाहर या घर में;
इधर उधर के तीरों पर बैठे सकुचे थे,
जल उछालते, राह ताकते, कोई आये
अपना हेलीमेली, लेकिन देर हुई थी
हम दोनों को आने में, सब पहले आए
और नहाकर चले गये थे । खिली कुईं थी
तट पर, मैंने तोड़-तोड़कर हार बनाये
दस या बारह, रखा, हला पानी में । देखा
इधर उधर ।'क्या आरपार तुम होकर पाये
खड़े खड़े इस पोखर को ।' 'न।' 'काली रेखा
उभरी मुख पर, मर्द हो गये हुआ न यह भी?'
'मर्द?' 'और क्या बच्चा ही होता है वह भी ।'