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तुम / नीरजा हेमेन्द्र

तुम्हारी स्मृतियाँ
इन स्याह रातों के
अन्धकार को तोड़ती
आसमान में दीप्त
सुनहरे तारे -सी
तपती भूमि पर
बारिश की प्रथम फुहार
साँझ के आसमानी क्षितिज से
तुम्हारी स्मृतियाँ उतर आती हैं
इन्द्रधनुष-सी
जीवन में मोड़-दर-मोड़
तुम मिलते रहे
प्रेम निवेदन से भरे
     तुम्हारे नेत्र
मुझे कराते अधूरेपन का एहसास
तुम विलीन हो जाते
पत्तों पर ठहरी हवाओं में
टेसू के फूलों में
समन्दर में बनतीं लहरों में
फिर भी
     मैं तुम्हे पा लेती
     सर्वत्र........।