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तुम तक / अज्ञेय

तुम तक कहीं मेरा स्वर
पहुँच जाय अचानक
तुम एक
कहीं तुम
पकड़ जाओ औचक-
कहीं बात झर जाय
मगर कहाँ! क्यों व्यर्थ
हृदय यों मर जाय!