मई का स्याह दिन, तूफान काल,
किस तरह हवा चली? खो गये, जिनका पता नहीं,
बहुतों को बेबस, बेघर बना गयी,
समुद्र आज भी सिसकता है, जिसकी गोद में,
हजारों को डुबो गई, त्रासदी की खबरों से,
करुणा भी पथरा गई, हाय-हाय की पुकार से,
पृथ्वी भी डगमगा गई, उन अमर दुलारो हित,
कुछ शब्द पुष्प अर्पित है, कुछ अश्रु बिन्दु अर्पित है।