फुटपाथ पर
झोपड़पट्टी में
पेट में घुटने सिकोड़े
चीथड़े से टाट ओढ़े
ठंड से ठिठुरती
जनता को
नजर अन्दाज कर
गर्म-गर्म कमरों में
नर्म-नर्म गद्दों पर
सोने वाले अय्यास
व्यवस्था के नुमाइन्दे
आज उद्वेलित
जी चाहता है
कि तेरे खिलाफ
बिच्छुओं के डंक सी
कविता लिखूँ
और जिसे तू
कुचल देना चाहेगा
पैरों तले
तुझे वह
गंदे नाले का
कीड़ा दिखूँ।