तुम्हारे ओझल होते ही
सब कुछ ठहर जाता है
सिर्फ साँसें पार करती हैं समय
निःस्पृह होकर
तुम्हारे साथ के बाद
कोई गीत के बोल
नहीं रुकते हैं ओठों पर।
तुम्हारी रूमाल की परतों में
हथेली के स्पर्श की परतें हैं
और वहीं से दिखते हो तुम
मुझमें मेरी ओर आते हुए
जैसे उदय होता है सूरज।