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दंगा / चन्दन सिंह

स्लेट-पट्टी पर
अगर ग़लत हिज्जे में भी लिख जाता था माँ
तब भी बच्चा उसे मिटाते हुए सहमता था तो
उसकी आँखों के सामने
मिटा दी गई
उसकी माँ

दंगाइयों ने घोंप दिया
उसके पेट में छुरा
फिर ख़ून की टपकती बूँदों को सुना
जैसे मतपेटियों में गिर रहे हों
मतपत्र
उसके पक्ष में

शर्म से कोई नहीं
जो भी लाल हुआ
ख़ून से ।