“एक मोटे से रस्से को
जैसे हवा में फैंकने का मन करे —
वो ऊँचा !
फिर घुमाकर किसी के गले में डालकर उसे खींच लो,
और वो शतरंज के पैदल जैसा— धम्म से गिर जाए ।
कभी सामने किसी को थमा के,
खिंचम-खिंचाई खेली जाए ।
रस्से को गोल-गोल, गोल-गोल, घुमाया जाए,
साँप जैसा ज़मीन पर डुलाया जाए ।
२६ वीं मंजिल से खड़े होकर
नीचे चलते किसी के सिर पे खुजली करें ।
यादों की बाल्टी कुएँ से भरें,
और अपनी तरफ ऊपर खींच लें ।
फिर, रस्से को खींचने पर,
हथेली से जैसे ख़ून निकलता है —
वैसा ...
दर्द।”