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दास्तान / सौरभ

हमारी दास्तान शुरू तो
सदियों पहले हुई
अभी तक खतम नहीं हो पाई है
जो वाक्या कुछ लम्हों से शुरू किया
सदियाँ उससे रंग़ीन है
खुदा करे ऐसे ही चलती रहे
हमारी यह दास्तान
यह सिलसिला कभी खत्म न हो
बहते रहें दरिया यूँ ही
फूलों पर भँवरे भी मँडाराते रहें
हम गीत खुशी के गाते रहें