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दिनारम्भ (कविता) / श्रीकांत वर्मा
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शहरों की छतों में
ह-ल-च-ल
हुई
मक्खियाँ
बैठ गईं
मँ-ड-रा
अपनी-अपनी
मेज़ों
पर।