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दिन-रात / उपासना झा

बनिये की दुकान से सौदा लेकर
लौटती, दो चोटियाँ लहराती रहती उसकी
हाथ में रहती एक रुपये वाली टॉफी अक्सर
जो चिल्लर की जगह उसे थमाया जाता
एक दिन लौटी
टॉफी की जगह
आँखो में आँसू लेकर
उस एक ही दिन में ही बड़ी हो गयी लड़की

एक रात
नींद की गोद में दुबकी हुई
लड़की की दोनों जाँघों में
कोई बाँध गया, मन भर वज़न
पेट में उठी एक लहर
बेधड़क जो नींद की चारदीवारी में भी घुस आयी
उसकी चद्दर, गिलाफ और कपड़ों में
कोई रच गया था रक्तिम बेल-बूटे
उस एक रात में बड़ी हो गयी लड़की