Last modified on 13 अगस्त 2008, at 01:20

दीप धरो / महेन्द्र भटनागर

सखि ! दीप धरो !

काली-काली अब रात न हो,
घनघोर तिमिर बरसात न हो,
बुझते दीपों में हौले-हौले,

सखि ! स्नेह भरो !

दमके प्रिय-आनन हास लिए,
आगत नवयुग की आस लिए,
अरुणिम अधरों से हौले-
हौले,

सखि ! बात करो !

बीते बिरहा के सजल बरस
गूँजे मंगल नव गीत सरस
घर आये प्रियतम, हौले-हौले

सखि ! हीय हरो !