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दीवाली / मंगलमूर्ति

आज दीवाली है
दीपावली, दीपमालिका !
अमावस की काली
अंधेरी रात के घनघोर अंधेरे को
हज़ारों-लाखों दीयों
और रंग-बिरंगी रोशन झालरों से
मिटाने की एक उल्लासमय कोशिश!
आसमान में फूटती-बिखरतीं आतिशबाजियां
पटाखों का शोर और धुंआँधार धमाके
मेवे-मिठाइयों के न जाने कितने डब्बे
ड्राइंगरूम में, फ़्रिजों में ठसाठस भरे-
लेकिन इन सब के बीच मेरा मन
क्यों चला जाता है बार-बार
उन हज़ारों-लाखों अंधेरी गिरी-पिटी
झुग्गी-झोपड़ियों की ओर
जिनमें करवटें बदलती पड़ी हैं
भूखी-सूखी ठठरियां ऐंठती हुई
पेट की आग में झुलसतीं-
और ये कैसी आग लहक रही है
इन भूख से जलते पेटों में
जिनकी आँच की धमस
यहाँ तक चली आ रही है-
मेरे पास तक-
जहाँ एक भयानक खिलखिलाहट
रह-रह कर फूट पड़ती है
इन चीखती-चिल्लाती आतिशबाज़ियों में
जो इन नीली-पीली रोशन झालरों से
उलझकर और डरावनी बन जाती हैं?
ये अमावास की दिवाली है
या दीवाली का अमावस?