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दुअरे से आबै सीरी रामचंदर, अँगनमा बीच ठाढ़ भेलै हे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऐश्वर्यशाली बाप की बेटी ओर सात भाइयों की प्यारी बहन पति के आग्रह को मानने के लिए तैयार नहीं है। अंत में, पति रूठकर विदेश जाने को तैयार हो जाता है। पत्नी का सारा गर्व टूट जाता है और वह पति के साथ जाने को तैयार हो जाती है। पति उस पर व्यंग्य करते हुए उसके पिता के ऐश्वर्य और भाइयों के प्यार की याद दिलाता है। इस पर वह कहती है-‘अब तो मेरी माँ मर गई, पिता तपस्वी हो गये तथा मेरे सातों भाई मेरी भाभियों के प्यार में पड़कर, मुझे भूल गये। अब तो मेरे लिए तुम्हारे चरणों का ही आसरा है।’

दुअरे सेॅ आबै सीरी रामचंदर, अँगनमा बीच ठाढ़ भेल हे।
ललना रे, धनि पलँगिया सरिआउ<ref>ठीक करो; सजा दो</ref> तोरा सँगे सूतब हे॥1॥
नैहरा में सोने के मंदिर घर, मोतियन केबार लागल हे।
ललना रे, सात भैया के बहिनियाँ, तोरा सँगे न सूतब हे॥2॥
घर पिछुअरबा में मरबड़िया<ref>मारवाड़ी; कपड़ों का व्यवसायी</ref> बसै, औरो मरबड़िया बसे हे।
ललना रे, बढ़ियाँ कोर<ref>किनारी</ref> धोतिया बेराय<ref>चुनकर अलग रखना</ref> राखु, हमें परदेस जैबै हे॥3॥
नैहरा में सोना के मंदिरबा, त मोतिया केबार लागल हे।
ललना रे, सात भैया के बहिनियाँ, त हमर साथ कैसे जायब हे॥4॥
अम्मा मोरा मरी गेल, बाबू मोर तपसी भेल हे।
ललना रे, सातो भैया भौजी सँग लोभायल, त मान मोरा थोड़ भेल हे॥5॥

शब्दार्थ
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