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दुखती रग / मंजूषा मन

जब भी सुनाई जाती उन्हें कोई कहानी
वे बड़े ध्यान से सुनते
कहानी में डूब जाना चाहते
कहानी के उतार चढ़ाव साफ नजर आते
उनके चेहरे पर...

पूछा उनसे कि क्या सुनते हो
इतनी गम्भीरता से,
ये गरीब तो हर दिन
बीसियों आते है तुम्हारे दरबार में,
इनकी समस्या का समाधान भी तो
तुम नहीं करते
फिर भी उनकी बातों को दुहराते हो..
बार बार सुनते हो...
क्या ढूंढते हो उसकी बातों में...

वे अजीब सी हंसी हँसकर बोले
कौन सुनता है उनकी बात
समस्या समाधान के लिए

मैं तो उनकी बातों
ढूंढता हूँ उसकी ही
दुखती रग...
जिसे थाम मैं पहुँच हूँ उसके मन तक
तभी तो हर बार चुनता है वो मुझे।