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दुख / राजेश कमल

बेरोज़गारी है मेरा दुख
पिता का दुख है एक अदद दामाद
और माँ का दुख तो अनंत है
जीवन में नमक की तरह घुस आए
इस आतंकवादी से
कोई नहीं मांगता पहचान पत्र
कहाँ से आते है दुख
कौन देता है इन्हें जन्म
कहाँ है घर इनका
कुछ प्रश्न अनुत्तरित है अभी
लेकिन
यही है परम सत्य
की दुख
अपनी पूरी उम्र जी के जाता है
ईश्वर कभी उसे
अकाल मृत्यु नहीं देता।