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दुनिया के लिए जरूरी / विवेक चतुर्वेदी

बहुत सी खूबसूरत बातें
मिटती जा रही हैं दुनिया से
जैसे गौरैया
जैसे कुनकुनी धूप
जैसे बचपन
जैसे तारे
और जैसे एक आदमी, जो केवल आदमियत की जायदाद
के साथ जिंदा है।

और कुछ गैरजरूरी लोग न्योत लिए गए हैं
जीवन के ज्योनार में
जो बिछ गई पंगतों को कुचलते
पत्तलों को खींचते
भूख भूख चीखते
पूरी धरती को जीम रहे हैं।

सुनो दुनिया के लिए जरूरी नहीं है मिसाइल
जरूरी नहीं है अंतरिक्ष की खूंटी पर
अपने अहम को टांगने के लिए भेजे गए उपग्रह
जरूरी नहीं हैं दानवों से चीखती मशीनें
हां क्यों जरूरी है मंगल पर पानी की खोज?

जरूरी है तो आदमी नंगा और आदिम
हाड़-मांस का
रोने-धोने का
योग-वियोग का
शोक-अशोक का
एक निरा आदमी
जो धरती के नक्शे से गायब होता
जा रहा है
उसकी जगह उपज आई हैं
बहुत सी दूसरी प्रजातियां उसके जैसी
पर उनमें आदमी के बीज तो बिलकुल नहीं हैं।

इस दुनिया के लिए जरूरी हैं
पानी, पहाड़ और जंगल
जरूरी है हवा और उसमें नमी
कुनकुनी धूप, बचपन और
तारे बहुत सारे।