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दुनिया को बदलने की ताक़त / महाराज कृष्ण सन्तोषी

चाय पीते हुए
मुझे लगता है
जैसे पृथ्वी का सारा प्यार
मुझे मिल रहा होता है

कहते हैं
बोधिधर्म की पलकों से
उपजी थीं चाय की पत्तियाँ

पर मुझे लगता है
भिक्षु नहीं
प्रेमी रहा होगा बोधिधर्म
जिसने रात-रात भर जागते हुए
रचा होगा
आत्मा के एकान्त में
अपने प्रेम का आदर्श !

मुझे लगता है
दुनिया में
कहीं भी जब दो आदमी
मेज़ के आमने-सामने बैठे
चाय पी रहे होते हैं
तो वहां स्वयं आ जाते हैं तथागत
और आसपास की हवा को
मैत्री में बदल देते हैं

आप विश्वास करें
या नहीं
पर चाय की प्याली में
दुनिया को बदलने की ताक़त है...।