Last modified on 22 जुलाई 2008, at 02:28

दूरवर्ती से / महेन्द्र भटनागर

शेष जीवन

जी सकूँ सुख से
तुम्हारी याद
काफ़ी है!
कभी
कम हो नहीं
एहसास जीवन में
तुम्हारा
यह बिछोह-विषाद
काफ़ी है!
तुम्हारी भावनाओं की
धरोहर को
सहेजा आज-तक
मन में,
अमरता के लिए
केवल उन्हीं का
सरस गीतों में
सहज अनुवाद
काफ़ी है!