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देवता / अज्ञेय

 देवता! मैं ने चिरकाल तक तुम्हारी पूजा की है। किन्तु मैं तुम्हारे आगे वरदान का प्रार्थी नहीं हूँ।
मैं ने घोर क्लेश और यातना सह कर पूजा की थी। किन्तु अब मुझे दर्शन करने का भी उत्साह नहीं रहा। पूजा करते-करते मेरा शरीर जर्जर हो गया है, अब मुझ में तुम्हारे वरदान का भार सहने की क्षमता नहीं रही।
मैं ने तुम्हें अपनी आराधना से प्रसन्न-भर कर लिया है। अब अत्यन्त जर्जर हो गया हूँ और कुछ चाहता नहीं; किन्तु पूर्वाभ्यास के कारण अब भी आराधना किये जा रहा हूँ।

दिल्ली जेल, 17 जुलाई, 1932