ख़्वाहिश की तस्कीं की ख़ातिर
अपने ला-यानी जज़्बों को
लौह-ए-दिल पर आँख रहे हैं
देश बिदेश की ख़ाक छान के
गिरते-पड़ते फाँक रहे हैं
अपनी दीद से ग़ाफ़िल कर कर
ना-दीदा को झाँक रहे हैं
ख़्वाहिश की तस्कीं की ख़ातिर
अपने ला-यानी जज़्बों को
लौह-ए-दिल पर आँख रहे हैं
देश बिदेश की ख़ाक छान के
गिरते-पड़ते फाँक रहे हैं
अपनी दीद से ग़ाफ़िल कर कर
ना-दीदा को झाँक रहे हैं