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दोष-दर्शन / रामनरेश त्रिपाठी

(१)
किसी के दोष जब कहने लगो, तब
न तुम खुद दोष अपने भूल जाना।
किसी का घर अगर है काँच का तो,
उसे क्यों चाहिए ढेले चलाना?
(२)
अगर धंधा नहीं इसके सिवा कुछ
कि औरों के गुनाहों को गिनाओ।
सुधारों की जरूरत है तुम्हें तो
शुरू घर से करो क्यों दूर जाओ?
(३)
बुरा उनसे, जिन्हें तुम जानते हो
बहुत संभव कि अपने को न पाओ।
मगर क्या दोष कुछ तुममें नहीं है?
पड़ोसी को बुरा तब क्यों बताओ?
(४)
करो प्रारंभ जब निंदा किसी की,
उचित है यह कि रक्खो ध्यान इतना,
निरे दो-चार वाक्यों से अचानक
पहुँचता है उसे नुकसान कितना।