मैने लिया
एक शब्द
हाँ,
सिर्फ शब्द
पर तुम्हें तो सदा
इसका अर्थ ही दिया
फिर तुम
जा बैठे पहाड़ की चोटी पर
दोस्त,
यह तुमने क्या किया
अब तुम्हें
आदमी की जगह
दिखायी देती है सिर्फ
उसकी परछाईं
जब कभी पहाड- पर बैठे-बैठे
नोंचती है तुम्हें तन्हाई
तब दोस्त की याद आती है
अन्यथा दोस्ती
एक कीड़े की तरह
अपनी ओर रेंगती
दिखायी देती है
हम जब भी मिलते हैं
तुम्हारे पास
देने के लिये
एक मुस्कान होती है
निस्सन्देह
जो मुझ तक पहुँचते-पहुँचते
हो जाती है
एक भुरभुरी बाँसुरी में तब्दील
मुस्कान से बाँसुरी तक
दोस्ती की इस यात्रा से
आदमी और आदमी के बीच
डगमगाती इस भाषा से
कैसे खुल सकती है कोई
खिड़की
जबकि अच्छी तरह मालूम है मुझे
कि मुस्कान भी
कई रंगों की होती है
कभी वह खुद को
कभी दोस्ती को
चालाकी के कन्धों पर ढोती है
दोस्त
हमारी दोस्ती है
शून्य से शून्य तक की यात्रा
इस हिसाब में
अपने को हमने
कहाँ-कहाँ काटा-छाँटा
मुस्कान से मुस्कान तक
हर पड़ाव
एक आईना होता है
आईना तुम्हारी तरह रंगों को
अपनी ज़मीन में नहीं बोता है
दोस्ती तुम्हारे लिए
महज़ एक शब्द है
इस शब्द को हम
रबर की तरह
कहाँ तक खींच सकते हैं
क्या दोस्ती को हम
मात्र एक सूखे शब्द से
सींच सकते हैं ?