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दोहे-2 / उपमा शर्मा

11.
मुक़ाबला असली वही, जो है ख़ुद से मीत।
कल से अच्छा आज यदि, यही बड़ी है जीत।

12.
दो और दो बस चार हैं, नहीं कभी भी पाँच।
झूठी गर तारीफ़ हो, बुझी लगन की आँच।

13.
मूर्ख मित्र को त्याग दे, गाँठ बाँध ये ज्ञान।
अगर शत्रुता भी रखे, साथ भला विद्वान।

14.
राजा धोता रंक के, चरण अश्रु के धार।
कृष्ण-सुदामा मित्रता, याद करे संसार।

15.
लाज कृष्ण ने आ रखी, हरी सखी की पीर।
खल खींचे जितना वसन, बढ़ता जाये चीर।

16.
उल्टी नैया प्रेम की, उल्टी इसकी रीत।
जो डूबा सो पार हो, ऐसी होती प्रीत।

17.
माँ की परछाईं रही और पिता का ख्वाब।
बिटिया उर में यूँ रहे, बगिया बीच गुलाब।

18.
मिश्री हो या फिटकरी, दिखता एक प्रकार।
परखें तो चलता पता, अलग-अलग व्यवहार।

19.
गौरेया चहको ज़रा, गाओ नित तुम राग।
आ जाओ फिर से यहाँ, ख़ुश हो जाये बाग।

20.
वृद्धाश्रम उनको दिये, छीनी उनकी ठांव।
बूढ़ा बरगद कट गया, खोई उसने छांव।