Last modified on 28 फ़रवरी 2009, at 11:03

दो कविताएँ / सौरभ

एक
जब मनुष्य नहीं था
तब कोई इबादत नहीं थी
नहीं थी दरगाह, मन्दिर, मस्जिद भी नहीं
फिर खुदा ने इन्सान बनाया
इन्सान ने महल बनाये
पेड़ काट
मंदिर बनाए मस्जिद बनाई
मार-काट मचाई
शायद अब वह चैन से बैठा है।

दो
सदियों से इबादत कर रही है पृथ्वी
सूय, यह पेड़
मनुष्य कुछ समय से इबादत कर
बन रहे महान।